श्री गुरु-वंदना
॥ दोहा ॥
गुरु चरण की महिमा अपार, कहाँ तक करूँ बखान ।
सद् गुरु ही हैं जगत् के, सच्चिदानन्द भगवान ॥
जग के सारे दु:ख हरे, गुरु नाम की ओट ।
गुरु बिना संसार में, जीवन है बस चोट ॥
गुरु की शरण में जो आए, उसे मिले विश्राम ।
गुरु की दृष्टि अमृत समान, जीवन बने सुखधाम ॥
गुरु की महिमा गाएँ सब, शास्त्र और पुराण ।
गुरु के बिना संसार में, नहीं कोई सुल्तान ॥
गुरु कृपा से मिल गया, सच्चे नाम का दान ।
श्रद्धा से जो भी जपे, पाए मन विश्राम ॥
गुरु ही हैं सच्चे स्वामी, जो करते सबका उद्धार ।
उनके चरणों में मिले, जीवन का आधार ॥
श्रद्धा और विश्वास से, जो गुरु को अपनाए ।
उसके जीवन में कभी, दु:ख ना पास आए ॥
गुरु की शरण में रहो, हो जाएगा कल्याण ।
सद्गुरु ही देते सदा, सच्चे मार्ग का ज्ञान ॥
गुरु की महिमा अपार है, कोई कर न सके बखान ।
गुरु कृपा से ही मिलें, सच्चिदानंद भगवान ॥
जो भी गुरु सेवा करे, उसे मिले करतार ।
सद्गुरु भक्ति के बिना, जीवन है बेकार ॥
गुरु के चरणों में रहो, यही है सच्चा धर्म ।
गुरु कृपा से ही मिले, हर संकट का मर्म ॥
गुरुमत ही इक सच्चा पथ, जो ले जाए पार ।
गुरु आज्ञा पर ही चलो, यही जीवन का सार ॥
गुरु के बिना जगत् में, जीवन है अंधकार ।
गुरु कृपा से ही मिले, जीवन को उजियार ॥
गुरु चरणों में ही है, सच्चे सुख की खान ।
गुरु भक्ति से हो, सब दु:खों का निदान ॥
गुरु का नाम अनमोल है, शाश्वत सत्य समान ।
जो भी उसका जाप करे, होवे वही महान् ॥
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अगस्त 2025
॥ दोहा ॥
परमहंस गुरुदेव जी, वंदन बारम्बार ।
सद् गुण सकल मोहि दीजिए, उपजै बुद्धि उदार ॥
झुकते ही गुरु चरण में, मस्तक भाग्य खुलै ।
बहु जन्म के विकार सब, क्षण इक माहिं कटै ॥
चरण-कमल के तेज से, नाशे मोह अन्धकार ।
मन अंतर प्रकाश होए, प्रगटे ज्योति अपार ॥
मन जब लग राता नहीं, गुरु चरणन के माहिं ।
तब लग चित्त विश्राम नहिं, सुख भी सपने नाहिं ।
सतगुरु सुख की ठौर हैं, दुःख सागर से पार ।
गूढ़ भेद सन्तन कहा, समझे समझनहार ॥
सुख सागर गुरुदेव के, रहिए चरणन लाग ।
प्रेम गुरू का ऊपजै, कोई पूर्वले भाग ॥
जग रचना जंजाल है, मन-मति भ्रम का जाल ।
जीव फँसाकर जाल में, नित खा रहे यम काल ॥
यम की करड़ी चोट से, गुरु बचावनहार ।
युग-युग में खुद ही बने, सेवक के रखवार ॥
सेवक का मन नित रहै, चरण-कमल के माहिं ।
चिन्ता निकट न आ सकै, भव-भय व्यापै नाहिं ॥
जब लग सद्गुरु के चरण, हृदय नाहिं बसाए ।
भटक-भटक कर जगत् में, जीव सदा दुःख पाए ॥
भवसागर अति विषम है, जा में गोता खाए ।
सतगुरु चरण जहाज में, जो जीव चढ़े तर जाए ॥
जन्मों की बिगड़ी जो दशा, गुरु सँवारने आए ।
ताते जग अभिमान तज, गुरु ही को ध्याए ॥
मन-मति के अभिमान में, डूबे जीव अनेक ।
सेवक क्षण में तर गए, गुरु चरणन की टेक ॥
ताते सब सन्तन कहा, जग में रहो सचेत ।
मोह भ्रम सब त्याग कर, कीजै गुरु से हेत ॥
आसा मनसा सकल तज, आत्म में कर बास ।
सतगुरु आत्म देव हैं, हम चरणन के ‘दास’ ॥
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जुलाई 2025
॥ दोहा ॥
दीनबंधु करुणासदन, मेरे सतगुरु सुजान ।
श्री परमहंस बन आ गए, भक्तों के भगवान ॥
करबद्ध वंदन करूँ, सतगुरु के चरणार ।
पावन ध्यान हिए में धरूँ, कीजै भव से पार ॥
गुरु कृपा से सब मिले, मन-वांछित वरदान ।
जीवन के हर मार्ग पर, होए सत्य पहचान ॥
गुरु बिना इस जगत में, नहीं सच्चा प्रकाश ।
पावन चरणों में सदा, जीवन का विकास ॥
चरण-रज से दूर हो, मन की सब उलझन ।
जब चरण-रज मस्तक लगे, पावन हो तन-मन ॥
गुरु सुदृष्टि पाए करि, मिटे सभी संताप ।
गुरू बिना संसार में, करि न सके कोई जाप ॥
सत् पथ पर चलते रहो, सत्य की होए पहचान ।
गुरु बिना इस जगत् में, नहीं होगा कल्याण ॥
अमृत सम गुरु के वचन, सुनि कर मिटें विकार ।
मन मंदिर में बस जाएँ, छूटे मोह संसार ॥
शरण गुरु की लेय करि, सहज हुए भव पार ।
जीवन सफल हो गया, दरगाह हुए स्वीकार ॥
जीवन अधूरा गुरु बिना, चाँद बिना ज्यों रात ।
मन में होए गुरु शब्द से, ज्ञान भानु प्रभात ॥
सतगुरु महिमा है अपार, दुखों का करें निदान ।
उनके चरणों में सदा, जीवन का कल्याण ॥
सतगुरु स्मरण करते रहो, मिटें सकल संताप ।
जन्म-मरण भी न रहे, रहे न कुछ परिताप ॥
सतगुरु चरणन में रहूँ, यही मेरी अरदास ।
सेवा करूँ भक्ति करूँ, यही पूँजी हो पास ॥
ऐसा कौन है जगत् में, जो गुरु महिमा करे बखान ।
पारब्रह्म हैं सतगुरु, आदि पुरुष सुजान ॥
गुरु के बिना ज्ञान नहीं, न हो सके उद्धार ।
सत्य-नाम जो उनसे मिला, जीवन का आधार ॥
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गुरु वंदना (दोहावली)
जून 2025
॥ दोहा ॥
परमहंस सद्गुरु मेरे, करुणामय भगवान ।
सादर पद-वन्दन करूँ, वारूँ तन-मन-प्रान ॥
मुद मंगलमय सद् गुरु, वन्दौं तव चरणार ।
तन-मन-धन अर्पित करूँ, मो को दीजै तार ॥
अग-जग त्राता आप हैं, सकल भुवन भर्तार ।
गुरु चरणन का ध्यान ही, बस मेरो आधार ॥
विधि-हरि-हर कर बाँधकर, निशदिन करत जुहार ।
इन्द्रादिक सब देवता, ठाढे़ करें गुहार ॥
नील गगन के थाल में, शब्द ही दीपक बाल ।
चन्द्रहिं चँवर बनाए कर, करत आरती थाल ॥
सागर चरण पखारते, रवि शशि जाके नैन ।
व्योम ही जाको शीश है, चारों वेद हैं बैन ॥
अंतरिक्ष मस्तक भाल है, धरणी जाके पाँव ।
हियतल जाका विश्व है, सो मोहि राखे छाँव ॥
जिन के अधरों पर रहे, मादक मृदु मुस्कान ।
सुधा झरत वचनावली, सो सद् गुरु मम जान ॥
चरण-रेणु धरि सीस पै, विनवत साँझ सवेर ।
सद् गुरु-आशिष पाए कर, भवनिधि तरत होए न देर ॥
छ: ऋतु सुषमा भर रही, जाका नाहिं अन्त ।
ग्रीष्म, शरद, वर्षा, शिशिर, यही वसन्त हेमन्त ॥
अमित तेज के पुञ्ज हैं, सो सद् गुरु दातार ।
कोटि भानु नतशिर हुए, निरखत तेज अपार ॥
गुरु चरणन की भक्ति बिनु, कोइ न भक्ति पाए ।
गुरु सेवा ही भक्ति है, वेदन कहा सुनाए ॥
रैन दिवस इस जीव को, ग्रसै काल विकराल ।
सोई बचा राखें जिसे, सतगुरु परम कृपाल ॥
अचल भक्ति मोहि दीजिए, निज चरणन का प्यार ।
निशि-वासर रहूँ मगन मैं, विसरै यह संसार ॥
‘दासनदास’ विनवै यही, कृपासिंधु गुरुदेव ।
छत्रछाया निज चरण में, बख़्शो अपनी सेव ॥
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