विश्वास कीजिए
· कि सफलता केवल बाहरी परिश्रम का परिणाम नहीं है; यह आपके भीतर की मानसिकता और विचारों से भी तय होती है।
· मनुष्य जैसा सोचता है, वैसा ही वह बन जाता है। सकारात्मक सोच सफलता का मार्ग प्रशस्त करती है।
· हर असफलता में सीखने का अवसर छिपा होता है। इस पर विचार करने से मनुष्य आगे बढ़ने की शक्ति प्राप्त करता है।
सफलता के मार्ग पर कैसे बढ़ें ?
· अतः अपने उद्देश्य को स्पष्ट और दृढ़ बनाएँ—
Þ आत्म-विश्वास को बनाए रखें और असफलताओं से न डरें।
Þ प्रेरणादायक व्यक्तित्वों और घटनाओं से प्रेरणा लें।
Þ नियमित रूप से आत्म-मंथन करें और अपने विचारों को सकारात्मक दिशा में ले जाएँ।
अगस्त 2025
· कि मनुष्य का व्यक्तित्व उसके विचारों का प्रतिबिंब है। यदि आप महान् बनना चाहते हैं, तो महान् विचारों को अपनाइए।
· कि हर विचार में निर्माण और विनाश दोनों शक्तियाँ होती हैं। यह आप पर निर्भर करता है कि आप अपने विचारों को किस दिशा में ले जाते हैं।
· कि श्रेष्ठ विचार मनुष्य की मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक स्थिति सभी को प्रभावित करते हैं।
· कि अपने विचारों को श्रेष्ठ बनाकर आप अपने जीवन को सुखद, समृद्ध और सफल बना सकते हैं।
· कि विचार श्रेष्ठ बनाने के लिए अपने उद्देश्य को स्पष्ट करें, नकारात्मक सोच से बचें और सफलता के उदाहरणों से प्रेरणा लें।
जुलाई 2025
· कि समय जीवन की सबसे बड़ी धरोहर है और इसका एक-एक क्षण अनमोल रत्नों से भी अधिक कीमती है। यदि एक पल निकल गया तो वह कभी लौटकर नहीं आता; इसलिए हर पल को जागरूक होकर जिएँ।
· कि भूतकाल—जो बीत चुका है—अब मात्र स्मृति है और वह हमें अनुभव प्रदान करता है। अतः भूतकाल की उपलब्धियों या असफलताओं पर अत्यधिक गर्व या पछतावा न करें।
· कि वर्तमान ही आपका वास्तविक समय है, जहाँ आप अपने सभी गुणों और शक्तियों का प्रयोग कर सकते हैं। वर्तमान ही वह क्षण है, जिसमें आप कर्म कर सकते हैं और अपने भविष्य का प्रारूप गढ़ सकते हैं। अतः इस बहुमूल्य वर्तमान को बिल्कुल व्यर्थ न करें।
जून 2025
¨ कि आपकी काया में ही एक महान् धर्म युद्ध करने के लिए कुरुक्षेत्र रूपी धर्म क्षेत्र है।
¨ कि आपकी काया में ही कौरव और पांडवों की दोनों सेनाएँ इस धर्म युद्ध को लड़ने के लिए तैयार खड़ी हैं।
¨ कि जैसे पांडव सेना अर्जुन के रथ पर विराजित भगवान श्रीकृष्ण जी को अपना पथ प्रदर्शक बनाकर विजय पाती है, वैसे ही सच्चे गुरुमुख सेवक अपनी काया रूपी युद्ध क्षेत्र में मन में स्थित अहंकार आदि विकारों की सेना के विरुद्ध अपने सद् गुरु को अपना सहायक रथवान् बना कर विजय पा लेते हैं।
¨ कि सद् गुरु की कृपा से ही हमें विजय प्राप्त होगी। अतः मन व माया के विकारों की सेना को परास्त करने के लिए निरंतर साधना रूपी संघर्ष जारी रहे।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें