उद्बोधन की लड़ियां

 उद्बोधन की लड़ियाँ

सितम्बर 2025

( मन की संपदा )

· जीवन का मूल्य और महत्व आने वाले उतार-चढ़ावों में ही बढ़ता है। इन उतार चढ़ावों में संतुलित रहने वाला मनुष्य जीवन के हर पहलू को गहराई से समझने और अनुभव करने में सक्षम हो जाता है।

· जीवन में प्रतिदिन हमारे सामने चुनौतियाँ आती हैं। लेकिन जैसे कि हम सभी जानते हैं कि संघर्ष ही जीवन का सार है। हर एक संघर्ष हमें मज़बूत, साहसी और आत्म-निर्भर बनाता है।

· साहस का अर्थ यह नहीं है कि हम कभी असफल नहीं होते, बल्कि यह है कि हम असफलता से उबर कर और भी दृढ़ संकल्प के साथ आगे बढ़ने लग जाते हैं।

· सकारात्मक सोच हमें आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है। यह हमारे विचारों में एक अद् भुत परिवर्तन लाती है, जिससे हम नई ऊर्जा और नई दिशा प्राप्त करते हैं। एक सकारात्मक दृष्टिकोण हमें जीवन की कठिनाइयों को एक अवसर के रूप में देखने की क्षमता देता है।

·  दृढ़ संकल्प और समर्पण वह शक्ति है जो हमारे सपनों को हकीकत में बदल सकती है। हमें यह समझना होगा कि कोई भी लक्ष्य इतना बड़ा नहीं होता कि उसे प्राप्त न किया जा सके, बस हमें विश्वास और धैर्य के साथ उस पर डटे रहना चाहिए।

· अंततः जीवन में सकारात्मक विचार और दृढ़ संकल्प हमारे सबसे बड़े साथी होते हैं। हमें अपने मन और आत्मा को प्रेरित करने के लिए हमेशा उच्च विचार और मज़बूत इरादों के साथ आगे बढ़ना चाहिए।

· नकारात्मकता से दूर रहकर और सकारात्मकता को गले लगाकर, हम अपने जीवन को एक नई ऊँचाई पर ले जा सकते हैं।

· जीवन के इस सफर में हमेशा अपनी क्षमताओं पर विश्वास बनाए रखें और अपने सपनों की दिशा में आगे बढ़ते रहें। आपकी यात्रा मंगलमय हो !


 

X

 

अगस्त 2025

( अवलोकन और अनुभव )

 

· जीवन की लहरें—जीवन एक विशाल सागर की एक अनुभव यात्रा के रूप में है, जिसमें हम सभी अपनी-अपनी नाव से यात्रा कर रहे हैं। यह सागर कभी शांत होता है, कभी तूफानी, लेकिन हर लहर हमारे जीवन के अनुभवों का प्रतीक होती है। जब हम समुद्र की लहरों से डरते नहीं हैं और उन्हें अपनाते हैं, तो हम समझ पाते हैं कि हम उन्हें पार करने की ताकत रखते हैं।

· निर्भय भाव—जैसे एक नाविक निडर होकर समुद्र के उतार-चढ़ाव में आगे बढ़ता है तो वह उससे बहुत कुछ सीखता जाता है। वैसे ही हम जीवन के उतार-चढ़ाव में स्थिर रहने पर ही खुद को मजबूत बनाते हैं। अतः यह समझना है कि हर अनुभव हमें कुछ न कुछ सिखाने आया है जो हमें जीवन के हर क्षण को अधिक समझदारी से जीने की प्रेरणा देगा।

· द्वंद्वों का अवलोकन (जीवन में आने वाले द्वंद्व)—अच्छा-बुरा, मीठा-कड़वा, अंधेरा-उजाला, गर्मी-सर्दी—हमारे जीवन के अनिवार्य हिस्से हैं। हम अक्सर इन द्वंद्वों में फंसकर इन्हें अपने अस्तित्व का हिस्सा मान लेते हैं। परंतु जब हम इन द्वंद्वों का साक्षी भाव से अवलोकन करते हैं, तो हम देख पाते हैं कि ये बस घटनाएँ हैं और हम इनका हिस्सा नहीं हैं।

· अभोक्ता भाव—जब हम जीवन की इन परिस्थितियों को बिना प्रभावित हुए दृढ़ता से देखते जाते हैं, फिर न तो भोक्ता बनते हैं और न ही कर्त्ता। इन्हें दर्शक की तरह अवलोकित करते रहना है, यही एक कला है।

· साक्षी भाव—जैसे एक फिल्म में अभिनेता के द्वारा निभाए गए किरदार को हम अनुभव करते हैं, परंतु हम उसे अपने जीवन का भाग नहीं मानते। यही साक्षी भाव है। इसका मतलब है बिना किसी पूर्वाग्रह के घटनाओं को देखना। यह वह दृष्टिकोण है, जिसमें हम न तो सुख में अति आनंदित होते हैं, न ही दुःख में डूबते हैं। जैसे पक्षी आकाश में उड़ता है, वह तूफान से नहीं डरता। वह हर परिस्थिति में संतुलित और स्थिर रहता है। साक्षी भाव हमें भी जीवन के हर उतार-चढ़ाव में स्थिर रहने की क्षमता देता है। यह हमें अपनी आंतरिक शांति की पहचान करने में मदद कराता है, जिससे हम बाहरी घटनाओं से प्रभावित हुए बिना अपने जीवन को सही दिशा में ले जा सकते हैं।

 

 

जुलाई 2025

(बुरे एहसासों से ऊपर उठें)

 

            मनुष्य के जीवन में तरह-तरह के अनुभव आते हैं—कभी सुखद, कभी दु:खद। ये एहसास हमारे मानसिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक स्तर को गहराई से प्रभावित करते हैं। यदि हम नकारात्मक या बुरे अहसासों के चक्र में फँसे हैं, तो जीवन बोझिल और निराशाजनक लगने लगता है।
लेकिन ऐसी अवस्था में यदि आशा का प्रकाश मंद नहीं पड़े तो अपने भीतर के दिव्य-स्रोत को जगाकर, हम इन बुरे एहसासों से ऊपर उठ सकते हैं और एक नई ऊर्जा, नई सोच के साथ आगे बढ़ सकते हैं। आइए, समझते हैं कि बुरे एहसासों से मुक्ति क्यों ज़रूरी है और उनसे मुक्त होकर सुख-शान्ति-समृद्धि एवं आनंद कैसे पाया जा सकता है।
बुरे एहसासों से मुक्ति—क्यों ज़रूरी ?
1. स्वास्थ्य पर प्रभाव—सबसे पहले इन नकारात्मक एहसासों का प्रभाव मनुष्य को तनाव, चिंता और अवसाद में ग्रस्त कर देता है जिससे मानसिक स्वास्थ्य के साथ-साथ शारीरिक स्वास्थ्य भी खराब होने लगता है।
2. आपस के व्यवहार में खटास—जब मन नकारात्मक विचारों से घिरा रहता है, तो हम अनजाने में दूसरों से ठीक तरह से जुड़ नहीं पाते, जिससे संबंधों में दूरियाँ आ जाती हैं।
3. आत्मिक विकास में बाधा—नकारात्मक भाव बार-बार लौटकर हमें आत्म-विकास और आध्यात्मिक प्रगति से रोकते हैं। इस कारण हम अपनी पूर्ण क्षमता का अनुभव नहीं कर पाते।
नकारात्मक एहसासों से बाहर निकलना—हम स्व-उन्नति, प्रेम और सुख-शांति के नए आयामों को छू सकते हैं, यदि—
1. अधिक से अधिक सकारात्मक एहसासों की ओर ध्यान देने लग जाएँ। हमारा मन बहुत चंचल है, फिर भी इसे हम सकारात्मक दिशा में मोड़ सकते हैं।
2. जिस पल हम दु:खद विचारों या भावनाओं में उलझे हों, उसी पल संयम रखते हुए अपना ध्यान अच्छे एहसासों की ओर मोड़ना शुरू कर दें। यह अभ्यास आसान नहीं होता, पर बारंबार अभ्यास करते-करते यह कला सीखी जा सकती है।
3. अपना उद्देश्य पहचानें—हर सुबह खुद से पूछें—आज मैं अपने जीवन को बेहतर बनाने के लिए कौन-सा एक सकारात्मक कदम उठा सकता हूँ ?

 

जून 2025

(मन की संवेदनाएँ)

 

· हमारे इस मानव जीवन में स्वाभाविक ही प्रकृति की तरफ से और पूर्व अथवा वर्तमान कर्मों के अनुसार बहुत-सी संवेदनाएँ आती और जाती रहती हैं। मानव का मन ही ऐसा है कि जो इन संवेदनाओं को पकड़कर बैठ जाता है और लम्बे समय तक उनके सोच-विचार में उलझा रहता है।
· मन में उठने वाली इन संवेदनाओं से प्रभावित हो कर शरीर, मन और आत्मा तीनों उद्वेलित होने लगते हैं। तद्नुसार क्रोध, भय, आत्म-ग्लानि, अवसाद, नाराज़गी, घृणा, प्रतिशोध, विलासिताएँ, आलोचना, निन्दा, चिढ़ना, आरोप-प्रत्यारोप, लालच, घमण्ड, विरोध आदि विकार मन पर छा जाते हैं।
· आज वर्तमान युग में शारीरिक व मानसिक अधिक बीमारियों का होना, हर समय दुखी रहना आदि बुरे एहसास भी मानव मन की इन संवेदनाओं के कारण ही हैं।
· यदि सत्संगति में इन विकारों की अनंत श्रृंखला को बढ़ने से न रोका जाए तो यही मानव मन के विकार जीवन को नर्कमय तो बना ही देते हैं और इसके साथ-साथ हमें यही विकार सांसारिक जन्म-मृत्यु के चक्र में भी बाँध देते हैं।
· अब बुद्धिमानी इसी में है कि समय रहते हम अपने मन पर नियंत्रण करने के साधन करने लग जाएँ। ये साधन क्या हैं ? यही कि अपने कल्याण का इच्छुक साधक नित्यप्रति श्री आरती-पूजन, निष्काम गुरु-सेवा, सत्संग तथा सुमिरण ध्यान करता रहे। परम हितकारी सन्त महापुरुषों का जगत् में यह बड़ा उपकार है जो जीवों को इन कल्याणकारी साधनों में संलग्न करते हैं।
 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें