( दु:खी जीवों की सुन कर विनय )
तर्ज़—होठों से छू लो तुम, मेरे गीत....॥
टेक—दुखी जीवों की सुन कर विनय,
प्रभु ने अवतार लिया ।
खुशियाँ ही खुशियाँ छाईं,
चहुँ दिशा जयकार हुआ ॥
1. दिन बीस सितम्बर का, वर्ष उन्नीस सौ छब्बीस का ,
ग्राम रायपुर कलां था वो, तहसील थी अजनाला ।
अमृतसर की धरती पर, प्रभु का अवतरण हुआ ॥
2. पिता अर्जुन दास जी थे, माता ज्ञान देवी कहलाईं,
धुरधाम को छोड़ नूरी, ज्योत धराधाम पर आई ।
पंचम रूप में प्रकट हो, जीवों को दीदार दिया ॥
3. पाप धरती पर था बढ़ता, मच रही थी हाहाकार,
आए जगत् में कुल मालिक, सृष्टि का करने सुधार ।
यही लक्ष्य केवल इनका, इस दुनिया में आने का ॥
4. भेष संतों का धर कर के, युग-युग प्रभु आते हैं,
अपनी निज रूहों को, सद्मार्ग दिखलाते हैं ।
अपने श्री चरणों का, देते हैं सहारा सदा ॥
5. हम जीवों पर प्रभु ने कितना ही किया उपकार,
प्रेम भक्ति का अनुपम यह, खोला जो श्री दरबार ।
बलिहार सदा जाऊँ, एहसान जो तूने किया ॥
6. हम दीनों की बस, प्रभुवर यही है अभिलाषा,
तेरे भिक्षुक बन करके, आएँ तेरे द्वार सदा ।
श्री चरणों के ‘दास’ बनें, करें चरणों की ही सेवा ॥
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तर्ज़—भर दो झोली मेरी या मोहम्मद.........॥
टेक—श्री आनंद पुर की धरती यह प्यारी है,
ये तो जन्नत है, दाता हमारी,
इसकी महिमा को किस मुख से गाएँ,
ब्रह्मा, विष्णु और शिव भी सकुचाएँ ।
श्री सतगुरु ने खुद फ़रमाया,
दर्जा इसका है भक्ति में आला प्रभु,
श्री आनंदपुर का अजब नज़ारा है,
लगे फीका जगत् बाकी सारा है,
बैकुंठों का प्रभु ने , नक्शा उतारा है,
परमहंसों की रहमत यहाँ भारी है।
त्रिलोकी से ये तो है न्यारी....॥
2. इसके कण-कण में भक्ति के फूल खिले,
श्री आज्ञा में जो जीव ढल जाते हैं,
इक नज़रे कर्म में ही कटती,
लख चौरासी जीवों की सारी।
त्रिलोकी से ये तो है न्यारी....॥
3. हर ख़्वाहिश यहाँ पूरी हो जाती है,
कल्प वृक्ष यह धरती कहलाती है,
हम दासों की ख़्वाहिश तो तेरा दर्शन है प्रभु,
और क्या माँगें, है बस तेरी जुस्तजू,
माँगते हैं तुमको तुम्ही से,
यही चरणों में विनती हमारी।
त्रिलोकी से ये तो है न्यारी....॥
रखना चरणों में, दूर कभी करना नहीं,
इक तेरा सहारा ही हमको प्रभु,
सच्चे माता-पिता हो तुम्ही सतगुरु,
रज़ा तेरी में हम रहें राज़ी,
लगे प्राणों की चाहे अब बाज़ी।
त्रिलोकी से ये तो है न्यारी....॥
भजन
( गुरु पूजा )
गुरु पूजा की शुभ घड़ी आई....॥
भजन
तर्ज़—दिल चीज़ क्या है .....॥
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