नाम सत् जग झूठ है
(कविता)
हीरा बेशकीमती है, जन्म इंसान का,
वचन शास्त्रों का प्रमाण है ज्ञान का ।
जो ऐसा श्रेष्ठ रत्न मिट्टी में मिलाए,
वह जीव अनजान है, दु:ख ही अपनाए ॥
सच्चा नाम है एक श्रेष्ठ जग में,
भंडार सच्चा सुख देने वाला ।
मोह इस जगत् का यह जो है,
वह तो है दु:खों की खान वाला ॥
बार-बार यह भोला जीव अज्ञानी,
दु:खों की ओर ही दौड़ता है ।
देख-देख कर दास हुआ हैरान,
रुख़ सुखों की तरफ नहीं मोड़ता है ॥
सभी ग्रंथों का संदेश है यह,
मानव जन्म नहीं बार-बार मिलता ।
ऐसा जन्म बहुत ही अनमोल है,
भाग्य बिना हरगिज़ यह नहीं मिलता ॥
भगवान के भजन बिना, ऐ मित्र प्यारे,
लाख खोजो, सुख-सार नहीं मिलता ।
संसार की आस तृष्णा त्यागे बिना,
भक्ति का सच्चा आधार नहीं मिलता ॥
संत सतगुरु परमात्मा का रूप हैं,
और किसी रूप में करतार नहीं मिलता ।
सतगुरु के ध्यान बिना ‘दासनदास’,
सच्चे मालिक का दीदार नहीं मिलता ॥
B
अगस्त 2025
दुनिया है जंजाल (कविता)
भटक रहा क्यों जग में बंदे, सुरत अपनी संभाल साथी ।
मत मान जग को अपना, यह सब है जंजाल साथी ॥
पल-पल बीत रही उमरिया, लौटे न बीता इक पल भी ।
आज ही चेत जा रे मानव, कल का भरोसा कुछ भी नहीं ॥
नेकी की राह पर चल, स्वाँस-स्वाँस जप प्रभु का नाम ।
बिन नाम जीवन व्यर्थ, बिन भजन न बीते एक शाम ॥
तृष्णा विष में डुबो न मन, कर गुण का विचार अभी ।
परमार्थ की पूंजी संग्रह कर, मिलेगा भक्ति नूर तभी ॥
संतों के वचन हैं अमृत, जो पी ले वो तर जाएगा ।
जल रहा माया अग्नि में, जप कर नाम शीतल हो पाएगा ॥
जन्म-जन्म की गाँठें खोल, मन का संशय दूर कर डाल ।
अज्ञान का पर्दा हटा, परख सच्चा या कच्चा माल ॥
मत कर अभिमान ऐ बन्दे, तेरा अपना कुछ भी नहीं ।
दौलत कीर्ति क्षणिक, बस नाम ही सदा सही ॥
जब काल आएगा सिर पर, तब न संगी न कोई मीत ।
प्रभु-नाम में जो रंगा मन, वही बनेगा सुख का गीत ॥
अज्ञान अंधेरे में डूब मत, ज्ञान ज्योति अंगीकार कर ।
गुरु-मूरत बसा मन में, भीतर के भ्रम का सुधार कर ॥
कर संग्रह भजन की पूँजी, हर स्वाँस कर प्रभु के अर्पण ।
साहिब की रहमत होगी, कटेगा भय का सब बंधन ॥
जुलाई 2025
सच्ची राह (कविता)
सच्ची राह पर चलो, भटको नहीं गलत राह पर,
कहाँ गुम हो गए, तुम सच्चे मार्ग से ।
ऐ पथिक ! तुम्हें खोजना है खुद को,
सच्चे रास्ते पर लौट आओ फिर से ॥
माया की मृगतृष्णा में खो गए,
संसार के झूठे रंगों में रंग गए ।
गुरु के चरणों में चित्त को लगाओ,
खुद को समझो, रास्ता उज्ज्वल बनाओ ॥
दुनिया की चमक से आँखें चुरा लो,
सच्चे सुख का रास्ता अपना लो ।
खोज असली जीवन का स्वर्ण-पथ सकोगे,
गुरु की कृपा से मुक्ति को पाओगे ॥
धंधों की दल-दल में खो गया है मन,
आत्म ज्ञान का भान नहीं कर पाए तुम ।
रात दिन की चकाचौंध में क्यों भटके हो तुम,
आखिर खुद से इतनी दूरी बनाई है क्यों ?
शरीर की सेवा में व्यस्त हो तुम,
सच्चे गुरु का नाम क्यों नहीं लेते तुम ।
अंधकार में सत् पथ की खोज क्यों नहीं करते तुम,
गुरु के शब्दों में उजाला साफ है ॥
झूठी दुनिया में खोया है जीवन,
असली मार्ग पर चलो अब ऐ सज्जन ।
सच्चे नियमों का कभी करो न उल्लंघन,
गुरु की सेवा से मिलेगा परमशांति का जीवन ॥
अज्ञानता की जंजीर तोड़ो
मोह अज्ञान की पड़ी जंजीर भारी,
जीव जकड़ा हुआ सदा परेशान होवे
जीव जकड़ा हुआ सदा परेशान होवे ॥
गुरु शब्द की लगे कुठार ऐसी,
कट जाए मोह जंजीर तब कल्याण होवे ॥
अज्ञान की नींद सोया जीव गाफ़िल,
गुरु ज्ञान के द्वारा सावधान होवे ॥
पहचान पावे अपने आप को और जगत् को,
बुद्धिहीन भी सत्संग में बुद्धिमान होवे ॥
गुरु पूरे का ऐसा प्रताप है जी,
सब ताप सन्ताप का नास होवे ॥
कोई दु:ख कलेश न रहे बाकी,
सन्त सतगुरु साहिब का जब दास होवे
सन्त सतगुरु साहिब का जब दास होवे ॥
नहीं यह हैरत की बात है बिल्कुल,
जो मूर्ख वह बने ज्ञानी सत्संग करके ॥
मलिन जीव को गुरु बनाएँ निर्मल,
ममता मोह अज्ञान की मैल हर कर
ममता मोह अज्ञान की मैल हर कर ॥
नित काल के वश जीव दु:ख पावे,
बार बार जन्मे और बार बार मर कर
बार बार जन्मे और बार बार मर कर ॥
होवे अमर यह गुरु का शब्द जप के,
दु:ख रूप जो सागर संसार तर कर ॥
ग्रन्थों शास्त्रों में महिमा सतगुरु की,
बार बार बेअन्त और बेअन्त आई ॥
गुरु बिना नहीं हुआ हिय में प्रकाश,
‘दासा’ गुरु बिना नहीं किसी ने मोक्ष पदवी पाई ॥
जीव जकड़ा हुआ सदा परेशान होवे
जीव जकड़ा हुआ सदा परेशान होवे ॥
गुरु शब्द की लगे कुठार ऐसी,
कट जाए मोह जंजीर तब कल्याण होवे ॥
अज्ञान की नींद सोया जीव गाफ़िल,
गुरु ज्ञान के द्वारा सावधान होवे ॥
पहचान पावे अपने आप को और जगत् को,
बुद्धिहीन भी सत्संग में बुद्धिमान होवे ॥
गुरु पूरे का ऐसा प्रताप है जी,
सब ताप सन्ताप का नास होवे ॥
कोई दु:ख कलेश न रहे बाकी,
सन्त सतगुरु साहिब का जब दास होवे
सन्त सतगुरु साहिब का जब दास होवे ॥
नहीं यह हैरत की बात है बिल्कुल,
जो मूर्ख वह बने ज्ञानी सत्संग करके ॥
मलिन जीव को गुरु बनाएँ निर्मल,
ममता मोह अज्ञान की मैल हर कर
ममता मोह अज्ञान की मैल हर कर ॥
नित काल के वश जीव दु:ख पावे,
बार बार जन्मे और बार बार मर कर
बार बार जन्मे और बार बार मर कर ॥
होवे अमर यह गुरु का शब्द जप के,
दु:ख रूप जो सागर संसार तर कर ॥
ग्रन्थों शास्त्रों में महिमा सतगुरु की,
बार बार बेअन्त और बेअन्त आई ॥
गुरु बिना नहीं हुआ हिय में प्रकाश,
‘दासा’ गुरु बिना नहीं किसी ने मोक्ष पदवी पाई ॥
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