श्री अमरवाणी के मुक्ताकण
· महापुरुषों के वचन हैं—
गुरुमुख का ध्यान हमेशा अपने इष्टदेव की तरफ़ होता है। वह देखता रहता है, ख़ुद को जाँचता रहता है कि महापुरुषों की कृपा मुझ पर हो रही है या नहीं हो रही। हर वक़्त उसकी यही इच्छा होती है कि महापुरुषों की कृपा मुझ पर बनी रहे।
महापुरुष भी देखते हैं कि जिन गुरुमुखों का ध्यान अपने इष्टदेव सद् गुरु की तरफ़ है , वे किस तरह अपनी गुरुमुखता को जतलाते हैं। इसके लिए ज़रूरी है कि गुरुमुखजन अपना फ़र्ज़ अदा करें। तो गुरुमुखों का फ़र्ज़ क्या है ? यही है कि वे सद् गुरु की आज्ञा में चलें। महापुरुषों ने यह केवल उदाहरण दिया है कि जैसे मणि वाले सर्प का ध्यान हमेशा मणि की सम्भाल में ही लगा होता है कि मणि कहीं उससे अलग न हो जाए, खो न जाए; वह उसकी सम्भाल करना भूलता नहीं, तो इसी उदाहरण को समझते हुए गुरुमुखजन सद् गुरु की आज्ञा को कभी नहीं भूलते, हमेशा उनका यही ख़्याल होता है कि सद्गुरु की आज्ञा से बाहर हम कोई कार्य न करें, हमेशा आज्ञा में ही रहें।
· आप सब तो गुरुमुख हैं, आपको भी हर वक़्त यही ख़्याल होता है कि हम श्री गुरु महाराज जी के सेवक हैं, तो सद् गुरु की आज्ञा के अनुसार सेवा करें; उसी में सेवकों का कल्याण है। सेवा की लगन ही है, जो सेवक को उसके लक्ष्य तक पहुँचाती है। जिस सेवक को सेवा की, सद् गुरु के प्यार को पाने की, उनकी कृपा को पाने की लगन लगी रहती है, वह हमेशा आज्ञा में चलता है और तभी वह सच्चे मायने में गुरुमुख कहलाता है। लेकिन अगर वह आज्ञा को भूलता है, तो—
जो कोई गुरु की अज्ञा भूलै ।
फिर फिर कष्ट गर्भ में झूलै ॥
सन्त सहजोबाई जी ऐसा कहती हैं कि सद् गुरु की आज्ञा को जो कोई भूलता है, वह बार-बार जन्म लेकर अनेकों कष्ट उठाता है, दुखी व परेशान रहता है। महापुरुष हमेशा यही समझाते हैं कि आप गुरुमुख हैं, आपको श्री गुरु महाराज जी की शरण मिली है और सभी गुरुमुखों का फ़र्ज़ ही यही है कि सब गुरुमुखजन उनके वचनों की पालना करें, उनकी आज्ञा में चलें। सेवकों का धर्म ही यही है कि वे महापुरुषों की आज्ञा में चलकर अपना जन्म सफल करें और उनकी प्रसन्नता हासिल करें।
· गुरुमुखो ! महापुरुषों की प्रसन्नता ऐसे ही हासिल नहीं हो जाती, जब तक इन्सान अपना मन सद् गुरु के हवाले नहीं कर देता, तब तक उसको ख़ुशी नहीं मिलती, आनन्द नहीं मिलता। ख़ुशी और आनन्द तभी मिलता है, जब वह अपना सर्वस्व अपने इष्टदेव के चरणों में समर्पित कर दे, भेंट कर दे और विनती करे कि मैं आपका ही हूँ, आपका सेवक हूँ, आपका दास हूँ। जब तक वह अपने-आपको महापुरुषों के चरणों में भेंट नहीं कर देता, उनके आगे दिल से शीश नहीं झुका देता, तब तक कारज पूरा नहीं होता।
· आप सब तो गुरुमुख हैं, महापुरुषों की आज्ञा में चल रहे हैं, सेवा-भक्ति की कमाई कर रहे हैं, आप सब गुरुमुखों पर महापुरुषों की बहुत प्रसन्नता है, बहुत कृपा है, जो आपको उनकी सेवा करने का अवसर मिला हुआ है। इसलिए सब गुरुमुख निष्काम-भाव से सेवा करते रहें, जिससे—
सद् गुरु की आज्ञा से सेवा करने पर, निष्काम-भाव से सेवा करने पर सेवकों को अपने इष्टदेव की प्रसन्नता प्राप्त होती है।
· गुरुमुखो ! आप श्री प्रयागधाम में हों या श्री आनन्दपुर धाम में हों, जहाँ भी जिसकी जो सेवा लगी हुई है, सबका यही फ़र्ज़ है कि सब सज्जन आज्ञा में चलें। पहले भी कहा है कि—
यानी जब इन्सान आज्ञा को भूल जाता है, तो वह चौरासी लाख योनियों के चक्कर में पड़ जाता है, अनेकों दु:ख भोगता है। आप सब गुरुमुख वही कार्य करें, जिसमें सुख हो, ख़ुशी हो, आनन्द हो। इसलिए ज़रूरी है कि आप सब गुरुमुख सद् गुरु की आज्ञा को न भूलें, महापुरुषों के वचन हमेशा याद रखें, सेवा करें, भक्ति की कमाई करें। इसी में सुख है, ख़ुशी है, आनन्द है, इसी कार्य को करते हुए अपना जन्म सफल करना है और महापुरुषों की प्रसन्नता हासिल करनी है।
s
अगस्त 2025
· महापुरुषों के वचन हैं—
गुरुमुख गुरु चित्त वत रहै, जैसे मणि भुवंग ।
एक पलक बिसरै नहीं, यह गुरुमुख को अंग ॥
गुरुमुख का ध्यान हमेशा अपने इष्टदेव की तरफ़ होता है। वह देखता रहता है, ख़ुद को जाँचता रहता है कि महापुरुषों की कृपा मुझ पर हो रही है या नहीं हो रही। हर वक़्त उसकी यही इच्छा होती है कि महापुरुषों की कृपा मुझ पर बनी रहे। महापुरुष भी देखते हैं कि जिन गुरुमुखों का ध्यान अपने इष्टदेव सद् गुरु की तरफ़ है, वे किस तरह अपनी गुरुमुखता को जतलाते हैं। इसके लिए ज़रूरी है कि गुरुमुखजन अपना फ़र्ज़ अदा करें। तो गुरुमुखों का फ़र्ज़ क्या है ? यही है कि वे सद् गुरु की आज्ञा में चलें। महापुरुषों ने यह केवल उदाहरण दिया है कि जैसे मणि वाले सर्प का ध्यान हमेशा मणि की सम्भाल में ही लगा होता है कि मणि कहीं उससे अलग न हो जाए, खो न जाए; वह उसकी सम्भाल करना भूलता नहीं, तो इसी उदाहरण को समझते हुए गुरुमुखजन सद् गुरु की आज्ञा को कभी नहीं भूलते, हमेशा उनका यही ख़्याल होता है कि सद् गुरु की आज्ञा से बाहर हम कोई कार्य न करें, हमेशा आज्ञा में ही रहें।
· आप सब तो गुरुमुख हैं, आपको भी हर वक़्त यही ख़्याल होता है कि हम श्री गुरु महाराज जी के सेवक हैं, तो सद् गुरु की आज्ञा के अनुसार सेवा करें; उसी में सेवकों का कल्याण है। सेवा की लगन ही है, जो सेवक को उसके लक्ष्य तक पहुँचाती है। जिस सेवक को सेवा की, सद् गुरु के प्यार को पाने की, उनकी कृपा को पाने की लगन लगी रहती है, वह हमेशा आज्ञा में चलता है और तभी वह सच्चे मायने में गुरुमुख कहलाता है। लेकिन अगर वह आज्ञा को भूलता है, तो—
जो कोई गुरु की अज्ञा भूलै ।
फिर फिर कष्ट गर्भ में झूलै ॥
सन्त सहजोबाई जी का कथन है कि सद् गुरु की आज्ञा को जो कोई भूलता है, वह बार-बार जन्म लेकर अनेकों कष्ट उठाता है, दुखी-परेशान रहता है। महापुरुष हमेशा यही समझाते हैं कि आप गुरुमुख हैं, आपको श्री गुरु महाराज जी की शरण मिली है और सभी गुरुमुखों का फ़र्ज़ ही यही है कि सब गुरुमुखजन उनके वचनों की पालना करें, उनकी आज्ञा में चलें। सेवकों का धर्म ही यही है कि वे महापुरुषों की आज्ञा में चलकर अपना जन्म सफल करें और उनकी प्रसन्नता हासिल करें।
· गुरुमुखो ! महापुरुषों की प्रसन्नता ऐसे ही हासिल नहीं हो जाती, जब तक इन्सान अपना मन सद् गुरु के हवाले नहीं कर देता, तब तक उसको ख़ुशी नहीं मिलती, आनन्द नहीं मिलता। ख़ुशी और आनन्द तभी मिलता है, जब वह अपना सर्वस्व अपने इष्टदेव के चरणों में समर्पित कर दे, भेंट कर दे और विनती करे कि मैं आपका ही हूँ, आपका सेवक हूँ, आपका दास हूँ। जब तक वह अपने-आपको महापुरुषों के चरणों में भेंट नहीं कर देता, उनके आगे दिल से शीश नहीं झुका देता, तब तक कारज पूरा नहीं होता।
· आप सब तो गुरुमुख हैं, महापुरुषों की आज्ञा में चल रहे हैं, सेवा-भक्ति की कमाई कर रहे हैं, आप सब गुरुमुखों पर महापुरुषों की बहुत प्रसन्नता है, बहुत कृपा है, जो आपको उनकी सेवा करने का अवसर मिला हुआ है। इसलिए सब गुरुमुख निष्काम-भाव से सेवा करते रहें, जिससे—
सेवा करत होइ निहकामी ।
तिस कउ होत परापति सुआमी ॥
सद्गुरु की आज्ञा से सेवा करने पर, निष्काम-भाव से सेवा करने पर सेवकों को अपने इष्टदेव की प्रसन्नता प्राप्त होती है।
· गुरुमुखो ! आप श्री प्रयागधाम में हों या श्री आनन्दपुर धाम में हों, जहाँ भी जिसकी जो सेवा लगी हुई है, सबका यही फ़र्ज़ है कि सब सज्जन आज्ञा में चलें। पहले भी कहा है कि—
जो कोई गुरु की अज्ञा भूलै ।
फिर फिर कष्ट गर्भ में झूलै ॥
यानी जब इन्सान आज्ञा को भूल जाता है, तो वह चौरासी लाख योनियों के चक्कर में पड़ जाता है, अनेकों दु:ख भोगता है। आप सब गुरुमुख वही कार्य करें, जिसमें सुख हो, ख़ुशी हो, आनन्द हो। इसलिए ज़रूरी है कि आप सब गुरुमुख सद् गुरु की आज्ञा को न भूलें, महापुरुषों के वचन हमेशा याद रखें, सेवा करें, भक्ति की कमाई करें। इसी में सुख है, ख़ुशी है, आनन्द है। इसी कार्य को करते हुए अपना जन्म सफल करना है और महापुरुषों की प्रसन्नता हासिल करनी है।
जुलाई 2025
· जो भाग्यशाली जीव महापुरुषों की चरण-शरण में पहुँच जाते हैं और महापुरुषों के मुखारविन्द से जो वचन निकलते हैं, उनको मानते हैं, उनकी पालना करते हैं, वे जीव गुरुमुख कहलाते हैं।
· भाग्यशाली गुरुमुखो ! महापुरुष हमेशा सत्य उपदेश देते हैं, सही रास्ता दिखाते हैं, असलियत की पहचान कराते हैं।
· महापुरुष कथन करते हैं—
नानक कचड़िआ सिउ तोड़ि ढूढि सजण संत पकिआ ॥
ओइ जीवंदे विछुड़हि ओइ मुइआ न जाही छोड़ि ॥
कि गुरुमुखो ! जो कच्ची चीज़ें हैं, झूठी चीज़ें हैं, उनका त्याग करो और जो हमेशा साथ निभाने वाली है, स्थायी है, उसकी खोज करो। स्थायी चीज़ कौन-सी है ? मालिक का नाम है, अपने इष्टदेव का शब्द है और यह कहाँ से मिलता है ? सन्त-महापुरुषों से। इसलिए सन्त-महापुरुषों की चरण-शरण ग्रहण करो। वे ही गुरुमुख को सच्ची चीज़, मालिक का नाम देते हैं। संसार की सब चीज़ें इसी संसार में उससे बिछुड़ जाती हैं, कभी न कभी तो साथ छोड़ ही देती हैं, लेकिन मालिक का नाम इस लोक में भी उसका साथ निभाता है और परलोक में भी सहाई होता है।
· गुरुमुखों को रूहानी फ़ैज़ मिलता रहे, वे ऐसी कमाई करें, जो सच्ची हो, स्थाई हो; इसीलिए हमारे श्री परमहंस दयाल जी महाराज ने श्री आनन्दपुर दरबार की रचना रचाई है, जिसमें आकर गुरुमुख जन रूहानी फ़ैज़ उठा रहे हैं। श्री आनन्दपुर, श्री प्रयागधाम, जगह-जगह और भी स्थान बने हैं; ये किसलिए हैं ? ये सब गुरुमुखों के लिए हैं, जहाँ पहुँचकर गुरुमुखजन महापुरुषों के दर्शन कर रहे हैं, भक्ति की कमाई के लिए उनके बनाए हुए साधनों को अपना रहे हैं, उनकी आज्ञा में चल रहे हैं और महापुरुषों से रूहानी फ़ैज़ उठा रहे हैं।
· महापुरुष हमेशा यही चाहते हैं कि गुरुमुखजन ऐसी चीज़ को ग्रहण करें, जो हमेशा साथ निभाने वाली हो, परलोक में साथ जाने वाली हो, जो दायमी हो। वह क्या है ? वह है—वक़्त के महापुरुषों का नाम, उसकी कमाई। नाम की कमाई ही साथ निभाती है, उसके साथ परलोक में जाती है। इसीलिए महापुरुष गुरुमुखों को बार-बार फ़रमाते हैं कि नाम की कमाई करो। आप गुरुमुखों ने नाम लिया हुआ है, गुरुमुखजन हमेशा नाम की कमाई करें। गुरुमुख जब नाम की कमाई करते हैं, तो महापुरुषों को ख़ुशी होती है कि गुरुमुखजन महापुरुषों की चरण-शरण में पहुँचकर नाम की कमाई कर रहे हैं। इसी नाम की कमाई करने से ही सब कुछ मिलता है, इसी में सब सुख समाए हुए हैं और इसकी कमाई ही जीव के साथ जाती है।
· दुनिया में और कोई ऐसी चीज़ नहीं है, जो उसे सुख दे, हमेशा उसका साथ निभाए और परलोक में भी साथ जाए। यही नाम की कमाई ही साथ जाने वाली चीज़ है, इसकी कमाई करो, इस को अपने हृदय में दृढ़ करो। बाक़ी सब चीज़ें जो हैं, वे यहीं रह जाती हैं; बस, महापुरुषों के दिए हुए नाम की कमाई ही साथ जाती है।
साथि न चालै बिनु भजन बिखिआ सगली छारु ॥
हरि हरि नामु कमावना नानक इहु धनु सारु ॥
· गुरुमुखो ! नाम की कमाई जो है, इसके बग़ैर और कुछ भी जीव के साथ नहीं जा सकता। संसार की कोई भी चीज़ जीव के साथ नहीं जाती। नाम की कमाई ही सार धन है, साथ जाने वाला धन है, इसी को इकट्ठा करना है। इसीलिए नाम की कमाई करने के लिए गुरुमुखों को महापुरुष हमेशा हिदायत करते हैं कि भजन किया करो, श्री आरती-पूजा किया करो, सत्संग, दर्शन, सेवा किया करो; यही वे कर्म हैं, जो जीव को बन्धन से छुड़ाने वाले हैं। यही असली कमाई है, इसी को याद रखना है और महापुरुषों के वचनों के अनुसार यही असली कमाई करनी है।
· यहाँ जितने गुरुमुखजन बैठे हैं और भी संसार में जहाँ कहीं भी गुरुमुख रहते हैं, वे इसीलिए गुरुमुख हैं कि वे सद् गुरु की आज्ञा में चलते हैं। महापुरुषों के यही वचन हैं कि श्री आज्ञा की पालना करो और जो श्री गुरु-दरबार के नियम बने हुए हैं, उनकी पालना करो और महापुरुषों की प्रसन्नता हासिल करो।
जून 2025
(सेवक का फ़र्ज)
सो प्रसादु जन पावै देवा ॥
इष्टदेव की आज्ञा को मानने के समान कोई और सेवा नहीं है। जिस सेवा को करने का हुक्म हो, जब सेवक उसी सेवा को करता है, तो उसे महापुरुषों की प्रसन्नता प्राप्त होती है और वही सेवक के लिए सुखदायी भी होती है। महापुरुष ही जानते हैं कि सेवक का कल्याण कैसे हो सकता है। इसलिए सच्चे सेवक भी यही चाहते हैं कि महापुरुषों के मार्गदर्शन में चलें और जो आज्ञा हो, उसी के अनुसार सेवा करें, जिससे उनकी प्रसन्नता भी मिले।
तिस कउ होत परापति सुआमी ॥
गुरुमुखो ! सेवा तो करनी है, यह भी ख़्याल रहे कि सेवा को निष्काम-भाव से करना है। ऐसे ऊँचे विचार जब गुरुमुखों को मिलते हैं और गुरुमुखजन महापुरुषों की आज्ञा के अनुसार निष्काम-भाव से सेवा करते हैं, तो वे अपने इष्टदेव को पा लेते हैं, उनकी प्रसन्नता के पात्र बन जाते हैं; ऐसे गुरुमुख ही श्रेष्ठ होते हैं। इसलिए महापुरुष गुरुमुखों को यह हिदायत देते हैं कि अपना सेवक-धर्म निभाओ, आज्ञा में रहो, इसी में आत्मा का कल्याण है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें