जिज्ञासा आपकी - समाधान हमारा
जिज्ञासा—जीवन का वास्तविक उद्देश्य क्या होना चाहिए ?
समाधान—जीवन का वास्तविक उद्देश्य आत्म-बोध और शांति प्राप्त करना होना चाहिए। इसे एक दीपक की उपमा से समझा जा सकता है। जैसे दीपक अपने चारों ओर अंधकार को मिटाकर प्रकाश फैलाता है, वैसे ही मनुष्य को अपने भीतर ज्ञान का दीपक प्रकाशित करना चाहिए और दूसरों के जीवन में प्रेम, करुणा और सुख का प्रकाश फैलाना चाहिए।
संसार में भौतिक सुख क्षणिक होते हैं, जैसे रेगिस्तान में मृग-तृष्णा। लेकिन आत्मा का सच्चा सुख स्थायी और शाश्वत है। इसके लिए हमें अपने भीतर झाँकना होगा, ध्यान और साधना के माध्यम से अपने वास्तविक स्वरूप को पहचानना होगा। एक पेड़ की तरह, जो निःस्वार्थ भाव से फल, छाया और ऑक्सीजन देता है, हमें भी अपने कर्मों से समाज और प्रकृति के प्रति उत्तरदायी बनना चाहिए।
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अगस्त 2025
जिज्ञासा—कृपया बताइए कि मन को सच्ची शांति कैसे प्राप्त हो सकती है ?
समाधान—वास्तव में सच्ची शांति आत्मा में जो हमारे अंदर है, इसे प्राप्त करने के लिए नकारात्मक विचारों का त्याग और सकारात्मकता का अभ्यास करें। ध्यान, प्रार्थना और ईश्वर में विश्वास मन को स्थिरता प्रदान करते हैं। इसके साथ ही, अपने मन और हृदय में क्षमा, करुणा और प्रेम की भावनाएँ भरना इसके आवश्यक अंग हैं। जीवन के बाहरी संघर्षों के बीच भी आंतरिक संतुलन बनाए रखना शांति का सबसे बड़ा स्रोत है। बाहरी भौतिक सुख में शांति नहीं है, बल्कि आत्मिक संतोष में है। ऐसे शांत चित्त से लिए गए निर्णय और विचार जीवन को सरल और सुखद बनाते हैं। इसके लिए नियमित ध्यान का अभ्यास आवश्यक है।
जुलाई 2025
जून 2025
जिज्ञासा— वंदनीय संपादक महोदय ! मैं सदैव अनेक समस्याओं से घिरा रहता हूँ, बारम्बार इन्हें ही सुलझाने में लगा रहता हूँ पर इनका अंत नहीं हो पाता। कृपया सुगम संभव उपाय बताएँ।
समाधान— प्रिय आनंद संदेश पाठक ! जीवन का अनुभव यह बताता है कि जब तक हम अपना ध्यान इन समस्याओं पर लगाए रखेंगे, तब तक इनका अंत हो पाना अति कठिन है। मेरे विचार में एक बहुत अच्छा उपाय यह है कि अपना अधिकतम समय इन समस्याओं की अपेक्षा अपने उस लक्ष्य पर विचार करने में लगाएँ जो आपने पाना है। इसके साथ ही यह भी कि जो पाना आप निश्चित करें वह श्रेष्ठ पदार्थ हो तथा सुखदायी हो। सत्पुरुषों के वचन अनुसार सुखदायी केवल प्रभु की भक्ति है। प्रभु-भक्ति पाने का निश्चय करने के बाद अधिकतम समय भक्ति के साधनों पर ही विचार करते रहें और फिर उसे पाने के लिए अपने आचरण में संलग्न हो जाएँ।
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